Indo-Pak War 1971: लुंगी पहनकर पूर्वी पाकिस्तान में घुसी थी सेना, फौजी वर्दी पहनी तो बांग्लादेश बन गया

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लेफ्टिनेंट कर्नल राजकुमार सिंह, कैप्टन नरेंद्र सिंह, कर्नल जावेद खान, इंजीनियर बीके गुप्ता
– फोटो : स्वयं

 

 

 

विस्तार

 

 

भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध  में भारतीय सेना की शौर्यगाथा आज भी सुनने वालों को रोमांचित कर देती है। इसमें बड़ी संख्या में अलीगढ़ के सैनिकों ने हिस्सेदारी की थी। उस वक्त हाथरस का जिले के तौर पर गठन नहीं हुआ था। यह अलीगढ़ की ही तहसील थी। अलीगढ़ और हाथरस को मिलाकर कुल 21 फौजियों ने इस जंग में अपनी जान कुर्बान कर दी थी। जीवित सैनिकों के मन में इस बात का संतोष था कि पाकिस्तानी सेना को उन्होंने हर मोर्चे पर धूल चटा दी थी। उन्होंने इतिहास के साथ ही भूगोल बदलकर रख दिया था। पूर्वी पाकिस्तान में तो भारतीय सैनिक बंगालियों की तरह लुंगी पहनकर घुसे थे। जब फौजी वर्दी पहनी तो पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र वजूद में आ गया था। आइए सुनते हैं कुछ ऐसे ही जांबाजों की कहानी उन्हीं की जुबानी-

दुश्मन की सेना पर वायुसेना ने ऐसी बमबारी की कि पांव उखड़ गए

 

महानगर के विष्णुपुरी में रहने वाले सेवानिवृत्त फ्लाइट इंजीनियर वीके गुप्ता 83 की उम्र पार करने के बाद भी  1971 के युद्ध का जिक्र छिड़ते ही जोश से भर जाते हैं। बताते हैं कि उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों पर बमबारी करने का उन्हें मौका मिला था। पाकिस्तानी टैंक गोले बरसा रहे थे। इधर भारतीय सेना मुस्तैद थी। पाकिस्तानी सेना को चकमा देते हुए वे हवाई जहाज से वो दुश्मन सेना पर बम गिराते थे, इसी के साथ पाक सैनिकों के पैर उखड़ गए। भारतीय सेना लुंगी पहनकर बंगाल की ओर से पहुंची थी, जिससे पाक सैनिकों को पता न चल सके।

बारूदी सुरंगों की बाधा पारकर दुश्मन के टैंकों को नेस्तनाबूद कर दिया

 

अलीगढ़ के कर्नल राजकुमार सिंह 52 साल पुरानी यादों को आज भी संजोए हुए हैं। बताते हैं कि 1971 के युद्ध में वे उस समय यंग कैप्टन के रूप में तैनात थे और उनकी पुंछ में तैनाती थी। युद्ध में जब चारों तरफ जमकर गोलाबारी हो रही थी तब उनकी यूनिट को दुश्मन के टैंकों को नेस्तनाबूत करने का आदेश मिला। यह मेरे लिए विशेष अनुभूति वाला क्षण था। वे बताते हैं कि यूनिट के साथियों के साथ उन्होंने सांबा सेक्टर में जाकर मोर्चा संभाला और दुश्मन को भागने पर विवश कर दिया। दुश्मन के पांव उखाड़ने के लिए बारूदी सुरंग की बाधा को पार करते हुए जांबाज आगे बढ़ते रहे।

 

मोर्चे पर साथी का बलिदान देखकर खौल उठा था खून, दुश्मन की सेना पर टूट पड़े थे

 

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