अमन लेखनी समाचार
ब्यूरो रिपोर्ट भोलू तिवारी
बहराइच।विकास मंच की ओर से
किया गया कार्यक्रम
कार्यक्रम की अध्यक्षता बहराइच विकास मंच की अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने किया
मंच संरक्षक अनिल त्रिपाठी ने बताया कि
जलियाँवाला बाग़ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है जहाँ 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।इसी घटना की याद में यहाँ पर स्मारक बना हुआ है।
मंच के अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने बताया कि जलियाँवाला बाग़ नरसंहार को व्यापक रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, जिसने “अंग्रेजी राज” का क्रूर और दमनकारी चेहरा सामने लाया, अंग्रेजी राज भारतीयों के लिए वरदान है, उसके इस दावों को उजागर किया.
कई इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना के बाद भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों के “नैतिक” दावे का अंत हो गया.
समाजसेवी रमेश मिश्रा ने कहा कि जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 100 साल हो चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवारों के ज़हन में उसका दर्द आज भी मौजूद है. 13 अप्रैल 1919 को हुए उस नरसंहार का समूचे भारत में विरोध हुआ और इस घटना ने आजादी की लड़ाई को नया रंग है।
इस मौके पर विनय कुमार मिश्रा एडवोकेट,पप्पू, धर्मेंद्र कुमार, आयुष पांडे, मानसू दीक्षित,
वह अन्य लोग मौजूद रहे